Ayurveda : जीवन बदलने के लिए क्यों जरूरी है आयुर्वेद ?

Healthy Hindustan
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    आयुर्वेद (ayurveda) भारत की सबसे समृद्ध पारंपरिक चिकित्सा पद्धति है जो विज्ञान सम्मत और प्रामाणिक भी है। महर्षि कश्यप ने गर्भस्थ शिशुओं की सेहत से लेकर किशोरावस्था तक की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को हजारों साल पहले पूरा किया। वैदिक काल में ही श्रुसुत सर्जरी विधा लेकर आ चुके थे। इसलिए सेहतमंद जीवन और रोगों से मुक्ति दिलाने का आधार आयुर्वेद वैदिक काल से ही रहा है। बदले जमाने में आज भी दुनिया को सेहतमंद बनाने और रखने का हुनर आयुर्वेद के पास है। विशेषज्ञों के मुताबिक आयुर्वेद में हर तरह की बीमारी का इलाज है और आयुर्वेद के मुताबिक जीवनशैली (lifestyle) अपना कर हर तरह के रोगों से बचाव मुमकिन है। आयुर्वेद वात, पित्त और कफ के तीन मूल सिद्धांतों पर काम करता है।

आयुर्वेद (ayurveda) लोगों को सेहतमंद बनाने वाली सबसे प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वेद के जरिये शरीर के बाहरी रोगों से लेकर अंदरुनी विकारों तक का इलाज संभव है। जब आधुनिक विज्ञान नहीं था तब मानव कल्याण में आयुर्वेद की सबसे बड़ी भूमिका रही। आज भी सेहतमंद बनाने की तमाम विधियों के बीच आयुर्वेद की महत्ता कम नहीं हुई है। तेज रफ्तार भाग दौड़ भरी जिंदगी में तनाव रहित और रोग मुक्त जीवन जीने में आयुर्वेद आपकी सबसे ज्यादा मदद कर सकता है। लेकिन कैसे, हेल्दी हिन्दुस्तान (Healthy Hindustan) ने कई जानकारों से बात कर इसे समझने की कोशिश की।\

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आयुर्वेद में क्या हैं त्रिदोष

•          वात

•          पित्त

•          कफ

आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ के असंतुलन को ही बीमारियों की वजह माना जाता है और इन तीन दोषों में संतुलन ही बीमारियों का निदान या उपचार। आयुर्वेद के मुताबिक इन तीन दोषों के आधार पर ही किसी व्यक्ति के शरीर की प्रकृति निर्धारित होती है। हर व्यक्ति की शरीर की प्रकृति अलग अलग होती है। किसी का शरीर वात प्रकृति का होता है तो किसी का पित्त और किसी का कफ प्रकृति का।

कैसे करें त्रिदोष को संतुलित

•          तेल से करें वात को संतुलित:  तेल (oil) से शरीर को पोषण (nutrition) मिलता है। सभी तेलों में तिल का तेल सबसे अच्छा माना जाता है। वात को संतुलित करने के लिए तेल से मालिश या अभ्यंग करने की सलाह दी जाती है। तेल को गर्म करें और अपने कानों में लगाएं। तिल के तेल के हर रोज प्रयोग से हमारे शरीर को पोषण और गर्मी मिलती है।

•          घी से करें पित्त को संतुलित: आयुर्वेद के मुताबिक घी मीठे स्वाद और ठंडी शक्ति के कारण पित्त को संतुलित करता है। खाना पकाने में घी का इस्तेमाल से लेकर आंखों पर लगाने, नाक छिद्रों में लगाने और सूंघने के साथ ही पैरों की मालिश में इस्तेमाल कर सकते हैं। कई बीमारियों में नाभि में घी डालकर भी पित्त को संतुलित करने में मदद मिलती है।

•          शहद से करें कफ को संतुलित: शहद को इसकी गर्म शक्ति और कषाय (कसैले) गुणों के लिए जाना जाता है। शहद स्वाद में मीठा होता है और कफ को संतुलित करना इसकी विशेषता है।

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