Dermatomyositis : इस बीमारी ने ले ली ‘दंगल गर्ल’ की जान, चकत्ते और सूजन सेहत के लिए हानिकारक हैं!

फिल्म दंगल में बबीता फोगाट का रोल करने वाली सुहानी भटनागर की डर्मेटोमायोसाइटिस नाम की बीमारी ने जान ले ली। यह बीमारी 10 लाख लोगों में किसी पांच को ही होती है। रेअर होने के बावजूद यह बीमारी मौत का फरमान नहीं। ऐसे में सवाल है कि आखिर क्या है यह बीमारी और क्यों गई सुहानी की जान?

Healthy Hindustan
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साल 2024 की 16 फरवरी को देश की जुबान पर एक नामालूम-सी बीमारी डर्मेटोमायोसाइटिस (Dermatomyositis) का नाम अनायास आ गया। इसकी वजह ‘दंगल गर्ल’ (Dangal Girl) नाम से मशहूर सुहानी भगनागर की मौत रही, जिसने आमिर खान की फिल्म दंगल में मशहूर महिला पहलवान बबीता फोगाट की भूमिका निभाई थी। महज 19 साल की उम्र में सुहाना की मौत की अचानक आई खबर ने हिन्दी फिल्म के प्रेमियों से लेकर संवेदनशील तबके को झकझोर दिया। अपनी इकलौती फिल्म से महिला सशक्तिकरण और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने वाली सुहाना जाते-जाते डर्मेटोमायोसाइटिस के बारे में जागरुकता का सबक दे गईं।

क्या हुआ था सुहानी को? (What happened to Suhani?)

बताया गया कि सुहानी के बायें हाथ में दो महीने पहले सूजन आने लगी थी। इसे सामान्य मानकर कुछ दिनों तक घरवालों ने अनदेखी की लेकिन जब ये सूजन दायें हाथ से होते हुए पूरे शरीर में दिखने लगी, तब अनहोनी का अहसास हुआ। बीमारी पकड़ में नहीं आई तो घर वालों ने एम्स (AIIMS) दिल्ली का रुख किया, जहां दुर्लभ बीमारी डर्मेटोमायोसाइटिस की पहचान हुई।

क्या है डर्मेटोमायोसाइटिस? (What is dermatomyositis?)

नाम और लक्षणों से भले ही यह स्किन से जुड़ी बीमारी लगे, लेकिन सही मायने में यह बहरूपिया है। दिल्ली स्थित एम्स में रुमेटोलॉजी डिपॉर्टमेंट की एचओडी (विभागाध्यक्ष) डॉ. (प्रो.) उमा कुमार कहती हैं,

“डर्मेटोमायोसाइटिस ऑटोइम्यून डिजीज है। इस तरह की बीमारी में शरीर का इम्यून सिस्टम स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करता है। इससे मांसपेशियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि वह काम ही नहीं करतीं। ऐसे में पीड़ित न तो अपनी कमीज का बटन खोल सकता है और न ही कंघी तक कर सकता है। कभी शरीर में चकत्ते, कभी हाथ में सूजन, कभी पूरे शरीर में सूजन तो कभी कंधे की मांसपेशियों में दर्द। सामान्य तौर पर मरीज यही नहीं तय कर पाता कि उसे किस तरह की बीमारी है।”

क्यों होती है इलाज में देरी? (Delay in treatment?)

जब किसी खास अंग से जुड़ी बीमारी समझ में नहीं आती तो फिर मरीज इलाज के लिए इधर-उधर भटकना शुरू करता है और सही इलाज में देरी मर्ज को गंभीर होने का मौका दे देता है। इसलिए डर्मेटोमायोसाइटिस के लक्षणों की शुरुआत में ही पहचान बेहद जरूरी है। इस बीमारी के नाम से जुड़े मायोसाइटिस का मतलब ही मांसपेशियों में सूजन और दर्द है।

डर्मेटोमायोसाइटिस के लक्षण 
• मांसपेशियों में सूजन 
• मांसपेशियों में दर्द 
• शरीर में चकत्ते  
• कमजोर इम्यूनिटी 
• स्किन में रेशेज  
• बेवजह थकान  

डर्मेटोमायोसाइटिस हर उम्र के महिला और पुरुषों में होने वाली बीमारी है। इस बीमारी में चेहरे, पलकों, कोहनियों, घुटनों, पीठ या सीने पर लाल या बैंगनी रंग के रैशेज दिख सकते हैं। इसमें मांसपेशियां तेजी से कमजोर होना शुरू होती हैं और सामान्य तौर पर हिप्स, जांघ, कंधे, बाजु और गर्दन की मांसपेशियों पर इसका असर दिखना शुरू होता है।

डर्मेटोमायोसाइटिस में क्या होता है? (What happens in dermatomyositis?)

डॉ. उमा कुमार के मुताबिक इस बीमारी में मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। मांसपेशियों की कमजोरी धीरे-धीरे शरीर के कई अंगों मसलन हार्ट, लंग्स, फूड पाइप, सांस की नली पर असर डालती है। जब मसल्स कमजोर होती हैं तो वह अपना काम नहीं कर पाती हैं। इससे बीमारी बढ़ती चली जाती है। ऐसे में जब लंग्स या हार्ट की मसल्स कमजोर हो जाती हैं तो मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है।

95 प्रतिशत तक रिकवरी की संभावनाओं के बीच यह बीमारी कई लोगों की मौत की वजह भी बन जाती है। जिन मरीजों को डर्मेटोमायोसाइटिस होती है उनमें कैंसर का भी खतरा रहता है। इसलिए इन मरीजों के कैंसर की जांच भी जरूरी है।”

डॉ. उमा कुमार, विभागाध्यक्ष, रुमेटोलॉजी (एम्स, दिल्ली)

डर्मेटोमायोसाइटिस होने की क्या है वजह? (Cause of dermatomyositis?)

डर्मेटोमायोसाइटिस ऐसी ऑटोइम्यून बीमारी है जिसकी कोई एक वजह नहीं। कई बार एनवायरनमेंटल फैक्टर इसे ट्रिगर करते हैं जिससे ऐसे मरीजों को बार-बार इन्फेक्शन होता है। स्मोकिंग, एयर पल्यूशन, डग्स, फूड हैबिट इस बीमारी की वजहें हो सकती हैं।

क्या है डर्मेटोमायोसाइटिस का इलाज? (Treatment for dermatomyositis?)

लक्षणों के आधार पर ही डर्मेटोमायोसाइटिस का इलाज किया जाता है। भले ही यह बीमारी दुलर्भ है लेकिन इसमें बहुत घबराने जैसी बात नहीं। डॉ. उमा कुमार के मुताबिक दूसरे ऑटो इम्यून डिजीज की तरह इसमें भी मरीज का लंबा इलाज चलता है। इस बीमारी की चपेट में आने वाले 95 पर्सेंट मरीजों को इलाज से राहत मिलती है। लेकिन इसके लिए जरूरी यह है कि बीमारी के लक्षण दिखते ही इसकी सही पहचान और सही डॉक्टर तक मरीज की पहुंच हो।

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