AIIMS : हो गया करार, अब बेबस नहीं महसूस करेंगे गठिया से मिली दिव्यांगता की चपेट में आए मरीज!

प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी जनता की सेहत और बेहतर जीवन के लिए संवेदनशील दिखते रहे हैं। विकलांगजनों को दिव्यांग पुकारने से लेकर आयुष्मान भारत योजना और जन औषधि केंद्रों को लेकर उनकी गहरी दिलचस्पी इसकी तस्दीक करती है। एक बार फिर एम्स के साथ मोदी सरकार का नया करार इसकी पुष्टि करता है।

Healthy Hindustan
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जब देश में मोदी सरकार के अंतरिम बजट का हिसाब लगाया जा रहा था, उसी वक्त दिल्ली के श्रम शक्ति भवन में बेहद खामोशी से एक अहम समझौते (MoU) को अंजाम दिया गया। इस समझौते में एक तरफ था देश का सबसे बड़ा अस्पताल एम्स (AIIMS) यानी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान तो दूसरी तरफ भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय का रोजगार महानिदेशालय। और जब इन दो बड़े संस्थानों के हाथ मिले तो उन बेबस लोगों के उदास चेहरों पर मुस्कान खिलने की बारी आ गई, जिन्होंने मर्ज को हराकर भी बेहतर जिंदगी की उम्मीद छोड़ डाली थी। इस ऐतिहासिक समझौते पर एम्स के डायरेक्टर एम. श्रीनिवास की मौजूदगी में रुमेटोलॉजी विभाग (Department of Rheumatology) की अध्यक्ष डॉ. उमा कुमार (Dr. Uma Kumar) ने दस्तखत किए।

यह समझौता ऐतिहासिक माना जा रहा है तो इसकी कई वजहें हैं। दरअसल, पूर्ण विकलांगता की 10 सबसे बड़ी वजहों में रुमेटोलॉजिकल विकार भी एक है। जोड़ों में दर्द, सूजन वाला यह रोग ऑटोइम्यून बीमारी है, जो शरीर की इम्युनिटी के टिशूज पर हमला करती है। इस बीमारी से पीड़ित लोगों के जोड़ों की परत में दर्दनाक सूजन होती है और कई बार यह विकलांगता तक पहुंच जाती है। इसके बाद तो दर्द-जकड़न वाली ये बीमारी जिंदगी में भी ऐसे ही लक्षणों को घोल देती है और फिर जीवन बोझ में बदल जाता है। ऐसे लोगों का जीवन न उनके लिए और न ही उनके परिवार के लिए बोझ हो, यही इस समझौते की खासियत है और यही इसके ऐतिहासिक होने की वजह।

यह किसी से छुपा नहीं कि रुमेटोलॉजिकल विकारों वाले मरीजों को हमेशा चुनौतीपूर्ण हालात का सामना करना पड़ता है। वाजिब इलाज मिलने के बावजूद विकलांगता और फिर इसके असर की वजह से मन और दिमाग पर पड़ने वाले असर, समाज की नजर, इलाज पर होने वाले बेहिसाब खर्च उन चुनौतियों में भारी इजाफा करते हैं। ऐसे पीड़ितों के लिए दवाई के बाद पढ़ाई-लिखाई और कमाई के रास्ते भी सिमट जाते हैं। एम्स और रोजगार महानिदेशालय की पहल इन्हीं मजबूरियों से निकालने की बड़ी राह तैयार करता है।

यानी गठिया के कारण विकलांगता से जूझने वालों के लिए यह समझौता नई जिंदगी की उम्मीद की किरण है। क्योंकि यह कौशल प्रमाणन और सार्थक रोजगार का रास्ता बनाता है, ताकि मरीज की देखभाल करने वाले को बोझ कम हो और इन रोगियों को बेहतर जीवन मिल सके। यह पहल एम्स ने और समझौते का चेहरा डॉ. उमा कुमार बनीं तो इसमें हैरानी नहीं। भारत में रुमेटोलॉजी (Rheumatology) के क्षेत्र में जबरदस्त काम से पहचान बनाने वाली डॉ. उमा कुमार को एम्स नई दिल्ली में रुमेटोलॉजी विभाग की संस्थापक होने का भी श्रेय जाता है। इस क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार के लिए प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार 2020 मिला था।

देश ही नहीं दुनियाभर में गठिया और उससे जुड़ी विकलांगता पर रिसर्च और जागरुकता से अपना योगदान देने वाली डॉ. उमा कुमार इस समझौते से गदगद दिखीं।

यह समझौता रुमेटोलॉजिकल विकलांगता की चपेट में आए मरीजों और उनके परिजनों के लिए क्रांतिकारी कदम साबित होगा। इससे पीड़ित रोजगार पा सकेंगे और रोजगार मिलते ही उन्हें लेकर समाज का नजरिया बदलने लगेगा। उन्हें भी दूसरों की तरह सम्मान से जीने का अवसर मिलेगा।”

डॉ. उमा कुमार, विभागाध्यक्ष, रुमेटोलॉजी विभाग, एम्स नई दिल्ली

डॉ. उमा कुमार कहती हैं कि यह पहल नैशनल करिअर सर्विस सेंटर्स फॉर डिफरेंटली एबल्ड (एनसीएससी-डीए) के साथ साझेदारी करके, एमओयू कौशल प्रमाणन, रोजगार क्षमता बढ़ाने और नए व्यावसायिक रास्ते खोलने की सुविधा प्रदान करेगा।

इस पहल से मिली आर्थिक स्वतंत्रता, देखभाल करने वालों के तनाव को कम करने और रोगियों को आत्मनिर्भरता की दिशा में सशक्त बनाने का वादा करती है। इस समझौते ने रोगियों के लिए एनसीएससी-डीए द्वारा आयोजित नौकरी मेलों में शामिल होने के अवसर खोला है, जिससे लाभकारी रोजगार हासिल करने में मदद मिलती है।

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