Healthy Lifestyle: घर का झाड़ू, पोछा कीजिए… बीमारी को दूर रखिए और 100 साल जी लीजिए

Healthy Hindustan
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क्या आपने ये महसूस किया है कि पुरुषों की तुलना में उसी उम्र की महिलाएं कम बीमार पड़ती हैं? क्या आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि दफ्तर न जाकर घर में अपना काम खुद करने वाली महिलाएं पति की तुलना में लंबी उम्र जीती हैं? क्या आपने अपने आसपास घरेलू काम करने वाले या मेहनतकश (शारीरिक श्रम) (physical work ) पुरुषों को ज्यादा सेहतमंद नहीं पाया है? अगर ऐसा है तो आपको इसकी वजह जानने की भी कोशिश करनी चाहिए। इसकी वजह बेहद खास नहीं बल्कि बिलकुल आम है।
अब तक डॉक्टर से लेकर बड़े-बुजुर्ग तक पसीना बहाने यानी मेहनत करने के महत्व के फायदे बताते रहे हैं। लेकिन अब आस्ट्रेलिया के सिडनी यूनिवर्सिटी ने एक रिसर्च किया है, जो इसकी पुष्टि करता है। इस रिसर्च ने लंबा जीवन जीने का आसान नुस्खा दिया है, जो कोई पहेली नहीं। लंबे जीवन के लिए इस मंत्र को बिना घर के बाहर जाए जिन्दगी में उतारा जा सकता है और जिसने ऐसा कर लिया उसकी लंबे जीवन की कामना पूरी होने पर किसी तरह का संशय नहीं हो सकता।
आस्ट्रेलिया के सिडनी यूनिवर्सिटी के इस रिसर्च में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया। रिसर्च में 87,500 से ज्यादा ब्रिटिश वयस्कों पर स्टडी की गई। इस रिसर्च में 62,000 ऐसे लोगों को भी शामिल किया गया जिन्होंने खाली वक्त में कसत (exercise) किया। यही नहीं, रिसर्च में जिन 25,000 लोगों को शामिल किया गया उनकी उम्र 62 साल थी। रिसर्च का मकसद रोजमर्रा के काम का सेहत पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह जानना था। नतीजे उम्मीद के मुताबिक आए।

रिसर्च का नतीजा
• रोजमर्रा के घरेलू काम नियमित रूप से करना रोग नाशक है
• इससे कैंसर और हार्ट अटैक सहित कई जानलेवा बीमारियां दूर भागती हैं
• रफ्तार बढ़ाकर दैनिक काम लगातार 11 मिनट करना सेहत के लिए जरूरी है
• ऐसा करने से हार्ट अटैक का खतरा 65 प्रतिशत कम हो जाता है
• यही नहीं, इससे कैंसर का जोखिम भी 49 प्रतिशत कम हो जाता है

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जिन लोगों पर रिसर्च किया गया उनमें 89 प्रतिशत को रोजमर्रा के काम पर लगाया गया। इस रिसर्च के मुताबिक घर पर किए जाने वाले रोजमर्रा के काम संजीवनी से कम नहीं। स्टडी में सामने आया कि दूसरों की तुलना में रोजमर्रा के काम करने वालों में बीमारी की गति बेहद धीमी थी।


रोजमर्रा का क्या काम करें
• घर-दरवाजे पर झाड़ू लगाना
• घर के फर्श की साफ-सफाई और पोछा
• अपने डॉगी को पार्क में टहलाना
• घर की सीढ़ियों पर इतना चलना कि तीन बार हांफ जाएं
• हाथ से कपड़े धोना
• कपड़े प्रेस करना

• बागवानी करना

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जिन लोगों पर रिसर्च किया गया उनमें 89 प्रतिशत को रोजमर्रा के काम पर लगाया गया। इस रिसर्च के मुताबिक घर पर किए जाने वाले रोजमर्रा के काम संजीवनी से कम नहीं। स्टडी में सामने आया कि दूसरों की तुलना में रोजमर्रा के काम करने वालों में बीमारी की गति बेहद धीमी थी।

इसी तरह की एक और स्टडी BMJ Open Journal में भी प्रकाशित हुई। इसमें रोजमर्रा के काम करने वालों में अच्छी नींद, ध्यान शक्ति बढ़ने और याददाश्त बढ़ने जैसे फायदे भी नजर आए। इस स्टडी में सिंगापुर के 489 लोगों ने हिस्सा लिया, जिनकी उम्र 65 से 90 साल तक थी। इस स्टडी में जिन बुजुर्गों ने हिस्सा लिया उनका बुढ़ापा दूसरों की तुलना में बेहतर रहा।
सिंगापुर में हुई इस स्ट़डी में घर के काम की तीव्रता को MET यानी मेटाबोलिक इक्विवैलेंट ऑफ टास्क (Metabolic Equivalent of Task) से मापा गया, जो शारीरिक श्रम (physical labour) करने में प्रति मिनट खर्च होने वाली कैलोरी है। इसके तहत घर के हल्के कामों के लिए 2.5 और घर के भारी कामों के लिए 4 मानक (Standard) माना जाता है। इस कसौटी पर युवा वर्ग के 36 प्रतिशत (90 लोग) और बुजुर्गों में 48 प्रतिशत (116 लोग) शौकिया श्रम (amateur labor) करने के मानक पर खरे उतरे, जबकि युवाओं में 61 प्रतिशत (152) और बुजुर्गों में 66 प्रतिशत (159) लोग सिर्फ घर के काम के जरिए लक्ष्य हासिल कर सके।

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