बेशक दातुन दांतों और जीभ की सफाई का सबसे अच्छा औजार है, खासकर नीम और बबूल का; लेकिन अब इसकी जगह टूथब्रश (Toothbrush) ने ले ली है। नए जमाने में डॉक्टर भी टूथब्रश को मुंह के स्वास्थ्य के लिए वैज्ञानिक तौर पर फायदेमंद (Toothbrush Benefits) बताने लगे हैं। लेकिन बाजार में मिलने वाले हर टूथब्रश को अच्छा मानने की भूल करेंगे तो इससे दांत और मुंह के स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है। टूथब्रथ खरीदते समय किन बातों का रखें ध्यान, किस तरह करें अच्छे टूथब्रश की पहचान और कितनी देर करें ब्रश ताकि न हो नुकसान, यहां हम देश के नामचीन दांत के कई डॉक्टरों (Dentist) से बातचीत कर इसका ब्योरा दे रहे हैं।
क्या टूथब्रश ही कर रहा है बीमार?
आपको जानकर हैरानी होगी कि बाजार में बिकने वाले ज्यादातर टूथब्रश ऐसे हैं जो दांतों की सफाई के बजाय दांत और मुंह की बीमारी की वजह बनते हैं। बाजार में कई कंपनियों के ब्रश उपलब्ध हैं। इनमें एंगुलर, हार्ड, सॉफ्ट, मीडियम से लेकर तरह तरह के रंगों और आकार-प्रकार के हैं। दस रुपये से लेकर सौ रुपये तक के ब्रश, मैनुअल से लेकर इलेक्ट्रिक ब्रश तक। लेकिन ये जरूरी नहीं कि ज्यादा कीमती ब्रश ही दांतों की देखभाल के लिए अच्छा हो।
ब्रश की क्वालिटी पर क्या कहते हैं डॉक्टर?
सीनियर डेंटिस्ट डॉ. सत्येंद्र सिंह कहते हैं कि टूथब्रश खरीदने से पहले उसकी सामग्री, डिजाइन और सुविधाओं को ध्यान में रखना जरूरी है ताकि उसके इस्तेमाल से दांतों और मसूड़ो को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे। अधिकतर टूथब्रश नायलॉन के बने होते हैं, जो दांत और मुंह के लिए ठीक है। लेकिन इनके ब्रिसल्स मुलायम (Soft) और गोल रेशे वाले होने चाहिए। जो ब्रिसल्स मुलायम और गोल नहीं होते वो दांतों और मसूड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। यानी पहला टूथब्रश की खरीदारी से पहले पहला सबक यह है कि यह हर हाल में सॉफ्ट हो।
डॉ. सत्येंद्र सिंह कहते हैं, “बाजार में मौजूद हार्ड और मीडियम रेशे वाले टूथब्रश दांतों का ऊपरी परत जिसे इनेमल (Enamel) कहा जाता है, उसे नष्ट कर देता है। इनेमल शरीर का सबसे मजबूत हिस्सा होता है जो दांतों को सुरक्षाचक्र देता है यानी दांतों को बीमारियों से बचाता है। इनेमल के घिसने का मतलब होता है दांतों की बीमारियों को न्योता देना। अगर टूथब्रश सॉफ्ट नहीं होंगे तो दांतों का यही बाहरी आवरण इनेमल घिस जाएगा और दांतों के सुरक्षाचक्र में सेंध लग जाएगी।”
कब करें हार्ड टूथब्रश इस्तेमाल?
यही नहीं कड़े, सख्त और खुरचने वाले ब्रश दातों और मसूड़ों के बीच की जगह को और बढ़ाते हैं जिससे दांत कमजोर हो जाते हैं। इनसे मसूड़ों को भी नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। मसूड़ों को नुकसान पहुंचने से पायरिया होने का अंदेशा बना रहता है। इसलिए दांत कितने ही पीले क्यों न हों, हार्ड टूथब्रश का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। केवल सेंसेटिव दांत और बीमार मसूड़ों के मामले में अल्ट्रा सॉफ्ट ब्रिशल्स वाले ब्रश की सलाह दी जाती है। डॉ. सिंह टूथब्रश को लेकर एक और जरूरी हिदायत देते हैं। उनके मुताबिक एक टूथब्रश का इस्तेमाल छह हफ्ते से ज्यादा नहीं करना चाहिए। महीनों तक एक ही टूथब्रश का इस्तेमाल करने से टूथब्रश कीटाणुओं (Virus) के घर में बदल जाता है। उनकी सलाह है कि दांतों की रोजाना सफाई करने की तरह ब्रशों की भी रोजाना सफाई की जा सकती है। पोटाशियम परमैंगनेट के घोल से धोने पर ब्रश कीटाणुरहित बन जाते हैं। मुंह की सफाई के बाद ब्रश को कैप लगाकर रखना चाहिए।
आकार की बात करें तो क्रिस-क्रॉस एक्शन और स्ट्रेट डिजाइन जैसे विकल्पों को चुनना सही है। टूथब्रश खरीदते समय उसके हेड पर भी ध्यान देना चाहिए। हमेशा ऐसा टूथब्रश खरीदना चाहिए, जिसका हेड छोटा और चिकना हो। अगर ब्रश का हेड छोटा होगा तो ये आसानी से आपके पीछे के दांतों को साफ करेगा। दांतों की रोजाना देखभाल के लिए टूथब्रश तो जरूरी है ही, साथ ही दांतों की किस तरह और कितनी देर सफाई करें, यह भी जरूरी है। डॉ. सत्येंद्र सिंह कहते हैं कि सही टूथब्रश से दांतों को न बहुत ज्यादा और न ही बहुत कम दबाव के साथ साफ करें। सफाई के वक्त ब्रश को दांतों के ऊपर गोल गोल घुमाना चाहिए। सही तरीके से ब्रश करने के लिए अपने मुंह को चार हिस्सों में बांट लेना चाहिए और हर हिस्से के हर कोने में कम से कम 30 सेकंड तक ब्रश करना चाहिए। यानी, अगर सही ब्रश और सही तरीका हो तो दांतों की सफाई के लिए दो मिनट काफी है। दांतों की सफाई के वक्त इस बात का जरूर ध्यान रखें कि दांतों के पीछे वाले हिस्से से लेकर अंतिम सिरे तक ऊपर-नीचे हर जगह की सफाई हो। और एक बात और, दांतों की सफाई के बाद अपनी जीभ को साफ करना ना भूलें। अगर जीभ साफ नहीं करेंगे तो इसके कोनों और दरारों में कीटाणु पनप सकते हैं।