Gadgets Side Effects: कमजोर नजर, सुन्न दिमाग और दिव्यांगता की ‘सौगात’ देता है इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का ज्यादा इस्तेमाल

Healthy Hindustan
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Courtesy : Pexels

आपने कूबड़ की तरह चलते शख्स को जरूर देखा होगा। जरूरी नहीं कि इनमें सभी जन्म से ही ऐसे हों। इनमें अधिकतर वह हैं जिन्होंने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के ज्यादा इस्तेमाल से इसे हासिल किया है। तकनीक के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से शरीर पर पड़े दुष्प्रभाव की कहानी कहता है– झुके हुए कंधे, कूबड़ वाली पीठ, मुड़ी हुई ऊंगलियां, मूर्ति की तरह सख्त गर्दन और रोबोट जैसी चाल।
अपनी सहूलियत के लिए इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स (Electronic Gadgets) की शरण में जाने वाले इंसान ने धीरे धीरे इसे खुद पर इतना हावी कर लिया कि उसका शारीरिक श्रम (physical work) कम हो गया। इससे शरीर पर फौरी असर तो पड़ा ही, लेकिन खतरा अब इससे शरीर में कुछ स्थायी बदलाव होने का भी है।
बीते कुछ बरसों में स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट, कम्प्यूटर और टेलीविजन के इस्तेमाल का चलन घर से लेकर दफ्तर तक में बढ़ा है। जिसका असर शरीर पर पड़ा है।
रिपिटिटिव इंजरी का खतरा : दफ्तर में काम के करीब 9 घंटे और घर में एक ही स्थिति में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के सामने बैठे रहने से रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है। इससे पीठ सीधी नहीं रह पाती और झुकने लगती है। सिर को सहारा देने के लिए गर्दन की मांसपेशियों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है और लंबे समय तक ऐसा होने से कूबड़ निकल आता है या इसका खतरा बढ़ जाता है। यानी धीरे धीरे ये विकलांगता की ओर ले जाता है। इसके अलावा इसकी वजह से सर्वाइकल पेन शुरू हो जाता है, जिसकी बड़ी वजह हड्डियों और डिस्क का घिसना है।


पीठ और पैरों में दर्द :

एक ही स्थिति में लगातार काम करने से पीठ और पैरों में दर्द शुरू हो जाता है। घंटों पीठ की मांसपेशियों पर दबाव और पैर को लटकाकर या मोड़ कर एक ही स्थिति में बैठे रहना इसकी बड़ी वजह है।


मुड़ रही हैं ऊंगलियां :

बीते कुछ साल में एक बदलाव पर लोगों का ज्यादा ध्यान नहीं गया है। अब ज्यादातर लोगों के हाथों में मोबाइल फोन होते हैं और जब नहीं होते तब भी ऊंगलियां अपने आप ऐसे मुड़ी रहती हैं मानो हाथ में मोबाइल फोन हो। पंजों की ऐसी दशा की वजह मोबाइल फोन पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता है और ये ऊंगलियों की हड्डियों को हमेशा के लिए ऐसी ही बना सकती हैं। इसी आदत की वजह से हमारी कोहनियां 90 डिग्री पर उसी तरह स्थिर हो सकती हैं जिस तरह फोन पर बातें करते समय रहती है। इसकी बड़ी वजह कोहनी के नसों पर लगातार दबाव पड़ना है।

दिमाग की घटती क्षमता :

तकनीक पर ज्यादा निर्भरता की वजह से दिमाग का काम पहले की तुलना में कम हुआ है और शरीर के जिस अंग का इस्तेमाल कम होता है वह कमजोर हो जाता है। चूंकि इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की वजह से दिमाग का काम कम हुआ है तो इसका असर याददाश्त से लेकर दिमाग की दूसरी क्षमताओं पर पड़ा है। लंबे समय तक गैजेट्स के इस्तेमाल से शरीर के साथ साथ दिमाग भी थक जाता है। बच्चों के दिमाग पर तो इसका ज्यादा ही असर पड़ता है। दस साल तक के बच्चे का दिमाग विकास की प्रक्रिया से गुजरता है और नई स्किल्स व नई चीजों के सीखने की उम्र में दिमाग की वायरिंग उसी तरह होती है। लेकिन जब ऐसा होगा ही नहीं तो दिमाग का सामान्य रूप से विकास भी नहीं होगा।
मोटापा और तनाव की वजह : इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के ज्यादा इस्तेमाल ने शारीरिक श्रम कम किया तो आलस भी बढ़ाया। इससे मोटापा और तनाव की वजह बनी। मोबाइल या कम्प्यूटर पर ज्यादा वक्त तक काम करने वालों का सामाजिक दायरा लगातार कम होते जाना भी इसकी बड़ी वजह है।

आंखों पर असर :

मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में ऑपथैलमोलॉजी विभाग के प्रोफेसर और दिल्ली के गुरु नानक आई केंद्र के सीनियर डॉक्टर प्रो. सुभाष डाडेइया ने कुछ साल पहले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के आंखों पर पड़ने वाले असर पर विस्तार से लेख लिखा था। इसमें उन्होंने विस्तार से जिक्र किया था कि कम्प्यूटर विजन सिंड्रोम (आई फटीग) कितना खतरनाक है और कितनी तेजी से बढ़ रहा है।

डॉ. सुभाष डाडेइया के मुताबिक मोबाइल फोन या कम्प्यूटर पर ज्यादा देर तक लगातार काम करने पर पलकें सामान्य से कम झपकती हैं जिससे आंखों में रुखापन आ जाता है। फोन या स्क्रीन को ज्यादा नजदीक से देखने पर आखों की मसल्स पर स्ट्रेस पड़ता है, जिससे आंखें थक जाती हैं। 

अपने लेख में डॉ. सुभाष डाडेइया ने इसके साइड इफैक्ट्स का भी जिक्र किया। डॉ. सुभाष के मुताबिक स्क्रीन वाले गैजेट्स से हाई फ्रीक्वेंसी ब्लू लाइट निकलती है, जो आंखों से टकराकर सर्केडियन रिदम में गड़बड़ी पैदा करती हैं। इससे नींद लाने वाला हार्मोन मेलाटोनिन कम बनता है और नींद गायब हो जाती है। यह न आंखों के लिए ठीक है न सेहत के लिए।

डॉ. सुभाष सहित सभी नेत्र रोग विशेषज्ञ (Eye Specialist) इस बात से सहमत हैं कि इलेक्ट्रॉनिकि गैजेट्स की सबसे बड़ी कीमत आंखों को ही चुकानी पड़ती है। इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स मॉडर्न लाइफ का हिस्सा हैं लेकिन इसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए कुछ एहतियात बरतने की जरूरत है।

कैसे करें इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल?

  • मोबाइल और लैपटॉप पर जितना जरूरत हो उतना ही समय बिताएं
  • बिस्तर पर जाते ही इन चीजों से दूरी बना लें
  • लाइट बंद होने के बाद इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से तौबा कर लें
  • 20-20-20 नियम का पालन करें
  • 20 मिनट काम के बाद 20 सेकंड का ब्रेक और 20 फीट की दूरी की चीज देखें
  • मोबाइल, लैपटॉप पर काम करने के बाद बाद आंखों को रोलिंग करें
  • पलकों को लगातार कुछ देर बंद करें खोलें और कुछ देर तक ऐसा करते रहें
  • कम्प्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल की लाइट की सेटिंग को ठीक रखें
  • ब्राइटनेस, कॉन्ट्रास्ट, फॉन्ट साइज सही रखें
  • काम करने वाली जगह पर पर्याप्त लाइट रखें
  • स्क्रीन पर किसी तरह का रिफ्लैक्शन नहीं होना चाहिए
  • डेस्कटॉप और खुद के बीच 20 से 28 ईंच की दूरी बनाए रखें
  • आरामदेह कुर्सी का इस्तेमाल करें और हमेशा सीधा बैठें
  • काम करते वक्त डेस्कटॉप नजरों के समानांतर हो
  • कुर्सी पर बैठें तो ध्यान रहे कि ऊंचाई इतनी हो कि पांव फर्श को छूए
  • किसी भी तरह की परेशानी महसूस करने पर डॉक्टर से दिखाएं


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