पित्त के असंतुलन से होने वाली बीमारियां
आयुर्वेद में बीमारियों की जो तीन वजहें बताई गई हैं उसमें वात और कफ के साथ पित्त के असंतुलन को भी एक माना गया है। पेट में होने वाली ज्यादातर बीमारियों की वजह पित्त दोष को ही माना गया है। अग्नि और जल तत्वों से मिलकर पित्त दोष बनता है। पित्त के गुणों की बात करें तो आयुर्वेद में इसे बुद्धि और ताकत की वजह बताया गया है। पित्त हमारे शरीर में बनने वाले हार्मोन (hormones) और (enzyme) को काबू में रखता है। शरीर का तापमान, पाचक ग्रंथि जैसी चीजें पित्त से ही नियंत्रित होती हैं। पित्त सबसे ज्यादा पेट और छोटी आंत में पाया जाता है। मध्यम कद का शरीर, कोमल मांसपेशियां और हड्डियां, स्किन पर तिल-मस्से होना पित्त प्रकृति के लक्षण हैं। आयुर्वेद में पित्त दोष को करीब 50 बीमारियों की वजह माना गया है।
• पीलिया (जॉन्डिस) (jaundice)
• आंतों में घाव, पेप्टिक अल्सर (peptic ulcer)
• पेट में दिक्कत, दर्द और आंतों में सूजन
• कब्ज, अपच, गैस (एसिडिटी) (acidity)
• स्किन (त्वचा, चमड़ी) से जुड़ी एक्जिमा और सिरोसिस जैसी बीमारियां
• स्किन का लाल होना
• हरपीज
• माइग्रेन (Migrain)
• सांसों की बदबू
पित्त के असंतुलन के लक्षण
• ठंडी चीजें खाने का मन करना
• शरीर (स्किन) का पीला पड़ना
• चक्कर आना, बेहोशी, थकावट और कमजोरी
• नींद में कमी, गुस्सा और चिड़चिड़ापन
• यादाश्त कमजोर होना
• नकारात्मक सोच
• औसत से ज्यादा भूख-प्यास महसूस होना
• सांसों की बदबू
• मुंह का कड़वा स्वाद
• मुंह, गला आदि का पकना
• शरीर से दुर्गंध आना
• उत्साह में कमी
• कठिनाइयों से मुकाबला न कर पाना
• सेक्स की इच्छा में कमी
• फेफड़ों में कफ जमा होना
• स्किन का रंग पीला पड़ना
• मल-मूत्र, आंखों और नाखूनों का रंग पीला पड़ना
• खट्टी डकार, छाती व गले में जलन
आयुर्वेद के जानकारों के मुताबिक आम तौर पर सर्दियां शुरू होते ही पित्त बढ़ना शुरू होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि पित्त बढ़ने की एक खास उम्र भी होती है जो युवावस्था है। दरअसल, हार्मोंस और एंजाइमों में तेज उतार-चढ़ाव इसी उम्र में होता है और इसकी एक और वजह आधुनिक लाइफस्टाइल भी है, जिसकी वजह से जिंदगी तेज रफ्तार हो चुकी है।
क्यों बढ़ता है पित्त?

• चटपटे, मसालेदार और तीखे खान-पान की वजह से
• तिल का तेल, सरसों, दही, छाछ, सिरका आदि का ज्यादा सेवन करने से
• गोह, मछली, भेड़ या बकरे के मांस का ज्यादा सेवन करने से
• लंबे समय तक भूखे रहने से
• बिना भूख लगे ही भोजन करने से
• ज्यादा मेहनत करने यानी लगातार बिना ब्रेक लिए काम करने से
• हमेशा मानसिक तनाव और गुस्से में रहने से
• ज्यादा सेक्स करने से
• शराब का सेवन ज्यादा करने से
पित्त को संतुलित रखने के उपाय
पित्त को सही और संतुलित रखने के लिए खान-पान का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। आयुर्वेद के जानकारों के मुताबिक पित्त के संतुलन के लिए खाने में इन चीजों का ध्यान रखें-
• छाछ : दही का सेवन करने से बचें। दही की जगह इसे पतला कर छाछ के रूप में या लस्सी के रूप में पीयें। छाछ या लस्सी में अजवाइन का प्रयोग करना पित्त विकार के लिए लाभदायक होता है।
• काला नमक : आयुर्वेद के जानकार दही या लस्सी के साथ काला नमक का सेवन करने की सलाह देते हैं। आयुर्वेद विशेषज्ञों के मुताबिक काला नमक का प्रयोग दिन में ही करना बेहतर रहता है।
• काला जीरा : पित्त को संतुलित करने में काला जीरा मददगार होता है। दिन और रात दोनों खाने में काला जीरा को शामिल करना चाहिए।
• गाय का घी : गाय का शुद्ध घी रोग रहित और रोग मुक्त रखने में मददगार होता है और आयुर्वेद में इसका विशेष महत्व है। पित्त की समस्या में भी गाय का घी विशेष लाभ देता है।
• आंवला : पित्त के संतुलन के लिए आंवला के सेवन की खास विधि बताई गई है। आंवला को रात को भिंगोकर रखना चाहिए। इसके बाद उसी पानी में उसे मसलने के बाद छान लेना चाहिए। इसमें मिश्री और जीरा मिलाकर पीने से पित्त संतुलित रहता है।
• पत्तीदार सब्जियां : खाने में हरी पत्तीदार सब्जियों का सेवन करें। गोभी, खीरा, गाजर को सब्जी में मिलाकर खाएं या इनके सलाद खाएं। आलू, शिमला मिर्ची की सब्जी भी पित्त के संतुलन में उपयोगी है।
• दाल : सभी तरह की दालों का सेवन करें।
• एलोवरा : एलोवरा जूस, अंकुरित अनाज, सलाद और दलिया खाने से पित्त संतुलित रहता है।
• पानी पीयें : हर दिन 3 लीटर से ज्यादा पानी पीयें।
• पेट साफ रखें : खानपान के जरिये पेट को साफ रखने के उपाय करें और इसके लिए जड़ी-बूटियों से लेकर पेट साफ करने वाली औषधियों का सेवन करें।
• ध्यान (Meditation) करें : नियमित रूप से ध्यान करें और ऐसे लोगों के साथ रहें जो सकरात्मक सोच (positive thinking) रखते हों। कुछ योगासन और शरीर को डिटॉक्स करके पित्त को शांत किया जा सकता है।
ये तो हुई खाने की बात, लेकिन पित्त के असुंतलन की स्थिति में क्या नहीं खाना चाहिए इसे लेकर भी आयुर्वेद के जानकार एकमत हैं।
पित्त दोष में क्या न खाएं
• आयोडीन वाले नमक का ज्यादा सेवन न करें

• फास्ट फूड, जंक फूड, तले हुए, गरम और जलन वाले खाने से बचें
• मूली, काली मिर्च और कच्चे टमाटर खाने से परहेज करें
• काजू, मूंगफली और पिस्ता न खाएं
• अखरोट और बिना छिले हुए बादाम भी न खाएं
• संतरे का रस (जूस), टमाटर का रस, कॉफी का सेवन न करें
• शराब का सेवन बिलकुल न करें
पित्त दोष में क्या करें
• ठंडे तेलों से शरीर की मालिश (मसाज)
• तैराकी (स्विमिंग)
• रोजाना कुछ देर में छाये में टहलें
• धूप में टहलने से बचें
• ठंडे पानी से नियमित स्नान करें
पित्त के असंतुलन से होने वाली बीमारियों का उपचार
• पित्त बढ़ाने वाले आहार का सेवन करें
• जिनमें अग्नि तत्व ज्यादा हों उसका सेवन करें
• डकार व छाती-गले के जलन से बचने के लिए कड़वे स्वाद वाले फलों का सेवन करें