चेहरे से लेकर शरीर के किसी भी हिस्से में स्किन (त्वचा) (skin) पर होने वाला छोटा, खुरदुरा और कठोर उभार सामान्यतया मस्सा ही होता है, जिसे मेडिकल की भाषा में वरूक कहा जाता है। नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफार्मेशन (ncbi) के आंकड़ों के मुताबिक मस्सों से करीब 10 फीसदी आबादी प्रभावित है, जो आम तौर पर चेहरे, हाथ, पैर और गर्दन पर होता है। चूंकि ये इतने आम हैं कि लोग ध्यान नहीं देते, लेकिन कई बार कुछ खास मस्सों (warts) (moles)को लेकर लापरवाही भारी पड़ सकती है, क्योंकि ये कैंसर के भी लक्षण हो सकते हैं।
मस्से होने का मतलब चर्मरोग होना है, जिसका कारण कई बार धूल और गंदगी है। चेहरे पर होने वाले मस्से आम तौर पर ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (HPV) (एचपीवी) के कारण होते हैं। ज्यादातर लोग इसे संक्रामक नहीं मानते लेकिन कई बार मस्से छूने या पीड़ित व्यक्ति की चीजों का इस्तेमाल करने से भी होता है।
मस्से स्किन के रंग के या गहरे लाल रंग के हो सकते हैं और ये शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकते हैं। ज्यादातर मस्से दर्दरहित होते हैं। कुछ मस्सों में नमी निकलने या खून निकलने की प्रवृति होती है। मशहूर होम्योपैथ डॉ. ए.के. अरुण इन मस्सों के होने और एक व्यक्ति से दूसरे में फैलने की वजह विस्तार से कुछ इस तरह बताते हैं,
स्किन पर किसी कट में ह्यूमन पेपिलोमा वायरस के प्रवेश करने से मस्से हो सकते हैं। महिलाओं में आइब्रो या ठुड्डी के आसपास होना इसी का नतीजा है। दरअसल, पार्लर में थ्रेडिंग और वैक्सिंग से संक्रमण होता है। पुरुषों में दाढ़ी एक ऐसा हिस्सा है, जहां ये ज्यादा होते हैं। इसकी वजह रेजर के कारण लगे कट में वायरस की मौजूदगी है।”
डॉ. ए.के. अरुण, एक्सपर्ट, होम्योपैथी
चूंकि मस्से होने की वजह वायरस हैं, इसलिए इसके एक से दूसरे में फैलने का अंदेशा होना लाजिमी है।

नैपकिन, तौलिये या मेकअप ब्रश शेयर करने से यह संक्रमण हो सकता है। आमतौर पर वीक इम्यूनिटी (कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता) वाले लोगों, डायबिटिक या इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं लेने वालों में मस्से ज्यादा होते हैं।
डॉ. अरुण के मुताबिक अधिकांश मस्से बिना किसी समस्या के चले जाते हैं। मगर कभी-कभी ये बीमारी का कारण बन सकते हैं।
कई बार यौन संबंध के कारण भी मस्से होते हैं। लिंग, योनि या मलाशय पर बनने वाले ऐसे मस्सों को जेनिटल वॉर्ट्स कहा जाता है। एचपीवी और जेनिटल वॉर्ट्स कई अलग-अलग कैंसर से जुड़े होते हैं, जिनमें गुदा कैंसर, गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर और गले का (ऑरोफरीन्जियल) कैंसर शामिल है। इसलिए विशेषज्ञ मस्सों को हल्के में नहीं लेने की सलाह देते हैं।
डॉ. ए.के. अरुण कहते हैं कि मस्सों का होम्योपैथ में बेहद प्रभावी इलाज है। इंडियन जर्नल ऑफ ड्रग्स इन डर्मेटोलॉजी में छपी एक स्टडी के मुताबिक भी सामान्य मस्से होम्योपैथी की दवा से करीब ढाई महीने में ठीक हो जाते हैं। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि हर जगह के मस्से के इलाज के लिए अलग अलग दवा का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा मस्सों के आकार, रूप, रंग के हिसाब से उसके इलाज के लिए अलग-अलग दवाओं का प्रयोग किया जाता है।
आम तौर पर मुंह के मस्से के इलाज में caust, thuja, acid nitric जैसी दवाओं का प्रयोग होता है तो भौं के मस्से के लिए caust और आंक की पलकों के लिए acid nitric का। इसी तरह आंख, नाक, मुंह के कोने, दाढ़ी, जीभ, गर्दन, हाथ, छाती, बांह, तलहथी, ऊंगली, अंगूठा, पैर और तलवे के लिए अलग अलग तरह की दवाइयां इस्तेमाल की जाती हैं। इनमें sulphur, condurango, lyco, aurum mur, sepia, cinnabaris, Natrum sulph से लेकर कई अन्य दवाएं प्रमुख हैं।
लेकिन किस दवा का कहां के मस्से के लिए और किस मात्रा में खुराक लेनी है, यह विशेषज्ञ ही तय कर सकते हैं। इसलिए कुछ दवाओं का नाम जान लेने या किसी से सुनकर खुद ही इलाज नहीं करना चाहिए। यही नहीं, हर दवा हर व्यक्ति पर एक जैसा असर नहीं करती। इसलिए खुद से अपना इलाज करना जोखिम भरा हो सकता है।
मस्सों से बचने के चंद उपाय
मस्से पर शेविंग करने से बचें
नाखूनों को दांत से नहीं काटें
तौलिये, वॉशक्लॉथ, कपड़े शेयर नहीं करें
नेल कटर, रेजर, ब्रेश शेयर न करें
दूसरे व्यक्ति के मस्से को न छुएं
एचपीवी वैक्सीन लगवाएं
मस्से को खरोंचने या काटने की कोशिश न करें
डिस्क्लेमर- ये सलाह सामान्य जानकारी है और ये किसी इलाज का विकल्प नहीं है।
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मैं भी मस्से से परेशान हुं…..