रंग का नाम लेते ही जितनी चटकीली छवियां आंखों के सामने तैर जाती हैं, वही अहसास होली (holi) का नाम लेने पर होता है। वजह साफ है। होली और रंग (colour) में चोली-दामन जैसा रिश्ता है। एक-दूसरे के बिना दोनों पूरा हो ही नहीं सकते। लेकिन दुकानों में जितने रंग बिकते हैं, एक अनुमान के मुताबिक उनमें 70 फीसदी मिलावटी और खतरनाक बीमारियां देने वाले रंग हैं। वजह है इन रंगों में खतरनाक रसायनों (केमिकल) (chemical) की मिलावट।
इन खतरनाक रंगों से बचाने के लिए बाजार में हर्बल रंगों की मांग बढ़ी है। लेकिन ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के लालच में हर्बल के नाम पर बिकने वाले रंगों में ही सबसे ज्यादा मिलावट होने लगी है। यानी हर्बल के नाम पर बाजार में लूट तो मची ही है साथ ही जहर की बिक्री भी हो रही है। ये मिलावटी रंग बच्चों से लेकर बुजुर्गों के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।
दिल्ली के तीरथराम अस्पताल के फीजिशियन डॉ. बिकास सिंह इन खतरनाक रंगों को लेकर आगाह करते हैं। डॉ. बिकास सिंह के मुताबिक इनमें कई जहरीले धातु, अभ्रक, कांच जैसे पदार्थ मिलाए जाते हैं जो कान, नाक और गले ही नहीं, स्किन और अस्थमा जैसी बीमारियों की वजह बन सकते हैं। सिंथेरिक और केमिकल मिले रंग कान, नाक, गले में परेशानी की वजह बन सकते हैं। कान में अगर रंगों वाला पानी चला जाए तो कान में अगर पानी चला जाए तो टिम्पेनिक झिल्ली फट सकती है और कान में तेज दर्द हो सकता है। इसके अलावा, कान में दर्द, कान से खून आना, बहरापन, कानों का बजना आदि लक्षण हो सकते हैं। इसकी वजह से ऑपरेशन तक की नौबत आ सकती है।
केमिकल वाले रंगों से सांस की बीमारी हो सकती है। हवा में फेंके जाने पर सूखे गुलाल में 10μm (माइक्रोन) कणों वाले भारी धातु होते हैं जो फेफड़ों में प्रवेश कर सेहत पर बुरा असर डाल सकते हैं। ये ड्राई केमिकल वाले गुलाल हमारे मुंह और सांस के जरिये शरीर में जाने के बाद अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) (COPD) जैसी स्थितियों को बढ़ा सकते हैं। मुंह और सांस नली में केमिकल वाले रंग पहुंच जाने से घरघराहट, खांसी और बलगम होने की समस्याह तक हो सकती है।”
डॉ. बिकास सिंह, फीजिशियन, तीरथराम अस्पताल
होली पर इन तीन रंगों से बचें
सिल्वर कलर : सिल्वर कलर को मजबूत और चमकदार बनाने के लिए एल्यूमीनियम ब्रोमाइड मिलाया जाता है जो सीधे-सीधे स्किन कैंसर को दावत देता है। बच्चों की स्किन बेहद नाजुक होती है और केमिकल वाले रंग उनकी स्किन में अंदर तक एबजॉर्ब हो जाते हैं।
चमकीला रंग : चमकीले रंग में लैड यानी शीशा होता है। इससे स्किन एलर्जी 80 प्रतिशत तक होने का अंदेशा रहता है।
डार्क ग्रीन कलर : डार्क ग्रीन कलर को गहरा रंग देने के लिए इसमें कॉपर सल्फेट मिलाया जाता है। कॉपर सल्फेट आंखों की बीमारी कर सकता है। अगर ये आंखों में चला गया तो रोशनी तक जा सकती है।
जहरीले रंगों को कैसे पहचानें?
• जिस भी रंगों में आपको चमक नजर आए उसे बिल्कुल न लें। रंगों में चमक बढ़ाने के लिए शीशे के कण डाले जाते हैं।
• ज्यादा डार्क कलर (गहरे रंग) वाले रंग-गुलाल न खरीदें। इनमें ज्यादा केमिकल मिलाए जाते हैं और हर केमिकल शरीर को नुकसान ही पहुंचाता है।
• रंग को पानी में डालकर भी पहचान सकते हैं। रंग को पानी में डालने पर अगर वो पूरी तरह नहीं घुले तो इसका मतलब है कि उसमें केमिकल और लैड है।
• जहरीले रंग की पहचान सूंघ कर भी की जा सकती है। अगर रंग या गुलाल से पेट्रोल या केमिकल जैसी गंध आए तो उसे बिलकुल न खरीदें।
रंग लगाने से पहले ऐसे बरतें सावधानी
• होली खेलने से पहले सिर से पांव तक तेल लगाएं
• बालों में सिर के नीचे तक तेल लगाएं
• जहां चोट या जख्म हो उसे बैंडेज से कवर कर लें
• चेहरे पर सनस्क्रीन का बेस लगाने के बाद तेल लगा लें
• लड़कियां या महिलाएं नाखून में डार्क नेल पॉलिश लगा लें
• चश्मा लगाकर रंग खेलें ताकि आंखों का बचाव हो सके
• एलर्जी हो तो वहां बर्फ, दही या एलोवेरा जेल लगा सकते हैं

पक्का रंग कैसे छुड़ाएं?
• पक्का रंग छुड़ाते वक्त स्किन को ज्यादा रगड़ें नहीं
• जहां का रंग न छूटे वहां दही और एलोवेरा जेल से धोयें
• ब्यूटी पार्लर जाकर ब्लीच कराने से बचें
• होली के पांच दिनों तक ब्यूटी पार्लर न जाएं
• रंगों में केमिकल होन से वह स्किन के अंदर पहुंच सकता है
डिस्क्लेमर- ये सलाह सामान्य जानकारी है और ये किसी इलाज का विकल्प नहीं है।