Antimicrobial Resistance : ‘चिकन’ खाने वालों के लिए बजी खतरे की घंटी, मरीज पर दवा के बेअसर साबित होने की वजह आई सामने

Healthy Hindustan
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क्या आप या आपका कोई जानकार बीमार पड़ता है तो दवाई खाने के बावजूद वह जल्दी ठीक नहीं होता? क्या कई बार कई तरह की दवाएं उस पर बेअसर साबित होती हैं? क्या डॉक्टर एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (Antimicrobial Resistance) (AMR) की स्थिति बताकर मरीज की कुछ दवाओं को बदलने को मजबूर हो गए? अगर ऐसा है तो आप या आपका जानकार इसकी चपेट में आने वाला अकेला शख्स नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (Antimicrobial Resistance) (AMR) को सेहत के लिए दुनिया के 10 सबसे बड़े खतरों में एक पाया है।

WHO के मुताबिक AMR मानवता के लिए बड़े खतरे की तरह सामने आया है, जिसकी सबसे बड़ी वजह चिकन कारोबारियों का लालच है। जिस चिकन को लोग सेहत बनाने के लिए खाते हैं, वही चिकन (मुर्गे/मुर्गी) उनकी जान का दुश्मन बन रहा है। WHO ने साफ साफ माना कि चिकन खाने वालों में 'एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस' की समस्याश तेजी से बढ़ रही है। चिकन खाने वाले अनजाने में ही एंटीबायोटिक की पूरी डोज ले रहे हैं। 

क्या है एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस?
चिकन से इंसानों में एंटीबायोटिक ट्रांसफर होने की स्थिति को मेडिकल की भाषा में AMR यानी एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (Antimicrobial resistance) कहा जाता है। एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस ऐसी स्थिति है, जिसमें किसी भी तरह के इंफेक्शन से होने वाली बीमारी के इलाज में इस्तेनमाल होने वाली एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल, एंटीफंगल और एंटीपैरासिटिक्स दवाओं का मरीज पर असर या तो बहुत धीमा हो जाता है या कुछ खास किस्म की ऐसी दवाएं काम ही नहीं करतीं। चिकन के चलते यह स्थिति पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है।

चिकन के शरीर में कैसे पहुंचते हैं एंटीबायोटिक्स?
लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल उठता है कि चिकन में एंटीबायोटिक कैसे पहुंचता है? इसकी वजह का खुलासा दुनियाभर की कई संस्थाएं करती रही हैं। भारत में सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरनमेंट (CSE) ने फरवरी 2018 में अपनी स्टडी के आधार पर जो रिपोर्ट जारी की उसमें दावा किया गया कि भारत में पोल्ट्री और मीट के लिए पाले जाने वाले पशुओं को हर साल करीब 2700 टन एंटीबायोटिक्स खिलाए जा रहे हैं। ऐसी ही एक स्टडी अमेरिका में Stuart B. Levy ने की जिसका नतीजा ये निकला कि US में हर साल करीब 15-17 मिलियन पाउंड्स एंटीबायोटिक्स खिलाए जाते हैं। (Photo : Freepik)

चिकन को क्यों खिलाए जाते हैं एंटीबायोटिक्स?
चिकन को बीमारियों से बचाने और उनके तेजी से विकास के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं। यह इंजेक्शन और दानों में मिलाकर दिया जाता है। चूंकि मुर्गे/मुर्गियां और जानवर बैक्टीरियल इंफेक्शन्स से बहुत जल्दी बीमार हो जाते हैं, इसलिए इन्हें बीमार होने से बचाने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं।

चिकन को दिए जाने वाले आम एंटीबायोटिक्स
• ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन
• क्लोर टेट्रासाइक्लिन
• डॉक्सीसाइक्लिन-एनरोफ्लॉक्सिन-सिप्रोफ्लॉक्सिन
• नियोमाइसिन
• एमिनोग्लाइकोसाइड

ये वो एंटीबायोटिक्स हैं जिन्हें WHO ने इंसानों के लिए खतरनाक बताया है। दिल्ली स्थित तीरथराम अस्पताल के फीजिशियन डॉ. बिकास सिंह कहते हैं, “एंटीबायोटिक्स बीमारी होने पर दिए जाते हैं, न कि रोग से बचाव या ग्रोथ के लिए। बेवजह दवाएं देने से न सिर्फ चिकन पर इसका खराब असर पड़ता है बल्कि यही खराब असर उसे खाने वालों के शरीर में भी पहुंच जाता है।”

कैसे होता है इंसान को नुकसान?
डॉ. बिकास सिंह इसे इस तरह समझाते हैं,

चिकन में एंटीबायोटिक्स के बड़े पैमाने पर इस्तेनमाल से उनमें एंटी बायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीेरिया उत्पन्न हो जाते हैं। यही बैक्टीरिया खाने के जरिए इंसानों में पहुंच जाते हैं। इसके अलावा, चिकन के साथ एंटीबायोटिक्स की छोटी खुराक नियमित तौर पर शरीर में जाने से मानव शरीर में भी एंटीबायोटिक्स प्रतिरोधी बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते हैं। इसका नुकसान यह है कि बीमार होने पर एंटीबायोटिक्स की खुराक से दूर होने वाली बीमारियां ठीक नहीं होंगी, क्योंकि शरीर में इन एंटीबायोटिक्स का प्रतिरोधी बैक्टीरिया पहले से होगा।”

डॉ. बिकास सिंह , तीरथराम अस्पताल, दिल्ली

टेट्रासाइक्लिन और फ्लूरोक्विनोलोंस एंटीबायोटिक्स
ये कॉलेरा, मलेरिया, रेस्पायरेटरी और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शंस के इलाज में इस्तेमाल किए जाते हैं। जानवरों पर इनका इस्तेमाल ड्रग रेजिस्टेंट बैक्टीरिया के रूप में सामने आता है। भारत में इसकी वजह से हर साल करीब 57,000 नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है, क्योंकि एंटीबायोटिक्स का असर मां के जरिए बच्चे पर भी पड़ता है।

कोलिस्टीन एंटीबायोटिक
मुर्गियों को बीमारियों से बचाने के लिए कोलिस्टीन नाम का एंटीबायोटिक देने का चलन है। मुर्गियों का वजन जल्द बढ़ाने के लिए बी कोलिस्टी एंटीबायोटिक का इस्तेमाल किया जाता है। मेडिकल साइंस गंभीर रूप से बीमार लोगों पर कोलिस्टीन के इस्तेमाल की सलाह देता है और इसी वजह से इसे लास्ट होप एंटीबायोटिक भी कहा जाता है। दूसरी किसी भी स्थिति में इसे पर्यावरण के लिए जहर माना गया है, क्योंकि ये मानव शरीर को दवा प्रतिरोधी बनाता है। जाहिर है, ये जब चिकन के जरिए किसी इंसान के शरीर में पहुंचता है तो नुकसानदायक ही साबित होता है। (Photo : Freepik)

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