Office Tension : अगर दिखे ऐसे लक्षण तो मान लीजिए ऑफिस नहीं ये है आपके लिए बीमारियों का घर

Healthy Hindustan
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ऑफिस में लगातार नौ घंटे तक काम करने के बाद क्या आप थकान महसूस करते हैं? क्या शारीरिक थकान के साथ साथ आप मानसिक थकान भी अनुभव करते हैं? क्या बीते कुछ दिनों से आपका मन किसी काम में नहीं लगता? दिमाग हमेशा चिंता के बोझ तले दबा रहता है? क्या अब आप खुद को कमतर भी समझने लगे हैं? अगर ऐसा है तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) के मुताबिक आप एक लाइलाज जैसी बीमारी की गिरफ्त में आ चुके हैं। इस बीमारी का नाम है बर्नआउट सिंड्रोम (burnout syndrome)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) (WHO) ने 2019 में इस बीमारी को इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज में शामिल किया था।

क्या है बर्नआउट सिंड्रोम?
WHO का कहना है कि क्रोनिक वर्कप्लेस स्ट्रेस से पैदा होने वाला वो सिंड्रोम जिसे मैनेज करना मुश्किल हो रहा है, बर्नआउट सिंड्रोम है। WHO के मुताबिक करियर में आगे बढ़ने और तरक्की पाने के लिए अपनी सेहत को दांव पर लगाने, दिन-रात काम में डूबे रहने, घंटों बैठकर काम करने और जरूरत से ज्यादा काम का दबाव-तनाव पालने वालों को ये बीमारी होती है। जानकार इसकी एक बड़ी वजह तरक्की की गला काट दौड़ को भी मानते हैं, जिसमें मेहनत करने वालों का हक मारकर दूसरों को दिए जाने का चलन बढ़ा है। यानी ये बीमारी कामकाजी लोगों से जुड़ी है।

बर्नआउट सिंड्रोम के लक्षण
• अक्सर शारीरिक थकान
• आठ घंटे की नींद लेने के बावजूद थकान
• अपने ही काम पर संदेह करना
• चिड़चिड़ापन
• काम के समय भूख न लगना
• ड्रग, अल्कोहल या स्मोकिंग की तलब
• हमेशा नकारात्मक सोच हावी रहना
• दोस्तों और परिवारवालों से दूरी बनाना
• चिंता में नींद नहीं आना

ये लक्षण तब दिखते हैं जब तनावपूर्ण जीवनशैली (lifestyle) का दबाव बढ़ जाता है। एक बार ऐसा होने पर शारीरिक और मानसिक थकान के लक्षण उभरने लगते हैं। इसके बाद काम का दबाव, साथ काम करने वालों के साथ प्रतिस्पर्धा (competition), सहयोगियों के साथ झगड़ा और दफ्तर में मिलने वाली चुनौतियों का अहसास बर्नआउट सिंड्रोम की चपेट में ले जाते हैं। यही नहीं, काम की लंबी अवधि, सुविधाओं की कमी और वरिष्ठों (seniors) की ओर से होने वाले खराब व्यवहार की वजह से भी कई लोग इस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं।
भारत के कई अस्पतालों में कोरोना (corona) महामारी के दौरान रेजिडेंट डॉक्टरों (resident doctors) को हफ्ते में औसतन 88 घंटे काम करना पड़ रहा था। इस दौरान कई रेजिडेंट डॉक्टर बर्नआउट सिंड्रोम की चपेट में आए। इंडियन जर्नल ऑफ कम्यूनिटी मेडिसिन में दो साल पहले छपी एक स्टडी के मुताबिक 56.66 फीसदी रेजिडेंट डॉक्टर में बर्नआउट सिंड्रोम के लक्षण दिखाई दिए, जिसका कोरोना महामारी के दौरान लगाई गई ड्यूटी से कुछ लेना-देना नहीं था।

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बीमारी की पहचान में देरी से क्या होगा?

• हार्ट डिजीज
• हाई ब्लड प्रेशर
• डायबिटीज टाइप 2
• इम्यूनिटी घटना
• नशे की लत
• नींद नहीं आना
• तनाव

बर्नआउट सिंड्रोम की चपेट में आने वालों को साइकोथेरिपी की सलाह दी जाती है। इस बीमारी से उबरने के लिए सबसे पहले तनाव को खत्म करने की कोशिश की जाती है और डॉक्टर बीमारी की गंभीरता का आकलन कर दवाई देते हैं। डॉक्टरों के मुताबिक बर्नआउट सिंड्रोम और ड्रिपेशन में कई लक्षण एक जैसे हैं, लेकिन दोनों अलग अलग हैं। डिप्रेशन के मरीज थकान और ऊर्जा (energy) में कमी महसूस करते हैं जिसका असर उनके काम पर दिखता है। इसी तरह बर्नआउट सिंड्रोम के मरीजों में आत्म-सम्मान की कमी और खुद को हारा हुआ और बेकार समझने जैसी भावनाएं भी दिखती हैं, जिसकी वजह से कई मरीज खुदकुशी (suicide) तक के बारे में सोचने लगते हैं।

कैसे रखें बर्नआउट सिंड्रोम को खुद से दूर?
• तनाव से बचने के लिए दफ्तर (office) के काम को बोझ न समझें
• ऑफिस के तनाव को दूर करने के लिए घर में मनपसंद काम करें
• खाली वक्त में ऑफिस की बात न करें
• दोस्तों और परिवार के लोगों के साथ वक्त बिताएं
• काम के चक्कर में सेहत से समझौता न करें
• सेहतमंद रहने के लिए कसरत (व्यायाम) (exercise) करें
• रोजाना कुछ देर योग (yoga) भी करें
• समय पर खाना खाएं, खाने में हरी सब्जियां और ताजे फल रखें
• दफ्तर का काम घर न लाएं
• हमेशा अच्छा सोचें और अपने आसपास प्रेरित करने वाले कोट्स लगाएं

इन उपायों के जरिये आप इस बीमारी को खुद से दूर रख सकते हैं। बर्नआउट सिंड्रोम के लक्षण दिखते ही इसे दूर भगाने के उपाय शुरू कर दें क्योंकि इसकी कोई कारगर दवा मौजूद नहीं है। बीमारी के लक्षण दिखने पर मनोरोग विशेषज्ञ की सलाह लेने से न हिचकें। यह जरूर याद रखें कि खुद पर भरोसा और अपने प्रयासों से ही आप इस बीमारी से बच सकते हैं।

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