वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ना यानी बीमारियों की चपेट में आना। आयुर्वेद में रोगों की वजह पर यह राय साफ है। वात और पित्त की तरह कफ के असंतुलन से कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है। कफ के बारे में कहा गया है कि यह पृथ्वी और जल दो तत्वों से मिल कर बना होता है। पृथ्वी के कारण कफ दोष में भारीपन और स्थिरता है तो जल के कारण ऑयली (तैलीय) (oily) और चिकनाई वाले गुण होते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक कफ के असंतुलन से व्यक्ति का मन और दिमाग शांत नहीं रहता। हर वक्त दिल-ओ-दिमाग में हलचल बनी रहती है जो तनाव की वजह बनता है। आयुर्वेद ने कफ दोष के बारे में जो अच्छी बात कही है वह यह है कि यह तीनों दोषों में सबसे कम परेशान करता है।
कफ प्रकृति वाले लोग आम तौर पर हंसमुख और मिलनसार होते हैं। ऐसे लोग आलसी और ज्यादा वजन वाले यानी मोटे हो सकते हैं। कफ के संतुलित होने की दशा में बाल घने रहते हैं और स्किन चमकदार रहती है। कफ असंतुलित होने पर हड्डियों और मांसपेशियों में एंठन होती है। शरीर को नम बनाए रखने और बामीरियों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता के लिए कफ का संतुलन या कफ प्रकृति बेहद जरूरी है। कफ के असंतुलन से लालच, जलन और ईर्ष्या जैसे नकारात्मक विचार पनपने लगते हैं। आयुर्वेद में कफ दोष को कई बीमारियों की वजह माना गया है।
चूंकि कफ शरीर को पोषण देता है और यह शरीर के बाकी दो दोषों वात और पित्त को भी नियंत्रित रखता है, इसलिए इसकी कमी होने पर बाकी दोष अपने आप बढ़ जाते हैं। इसलिए बीमारियों से लड़ने के लिए शरीर में कफ का संतुलित अवस्था में रहना बेहद जरूरी है।
कफ के असंतुलन से होने वाली बीमारियां
• कफ की अधिकता से बुखार, नाक बहना आम है
• कफ की अधिकता से सांसों से जुड़ी बीमारियां आम हैं
• कफ की अधिकता से दमा और साइनस जैसी बीमारी होती है
• कफ की अधिकता से सुस्ती, डिप्रेशन जैसी बीमारी भी होती है
• कफ की कमी से ठीक से नींद नहीं आती
• कफ की कमी से कमजोरी महसूस होती है
• कफ की कमी होने पर शरीर में रूखापन आता है
• कफ़ की कमी होने पर शरीर में अंदर से जलन महसूस होती है
• कफ की कमी से फेफड़ों, हृदय और सिर में खालीपन महसूस होता है
• कफ की कमी से प्यास ज्यादा लगती है
कफ के असंतुलन के लक्षण
• मोटापा
• खांसी, जुकाम, नाक बहना
• आंखों और नाक से अधिक गंदगी का स्राव
• स्वाद और सूंघने की क्षमता में कमी
• सांस संबंधी बीमारियां, सांस नली में सूखापन
• दमा (bronchitis)
• मुंह में मीठा स्वाद
• खट्टी डकार
• ब्लड वैसेल्स और आर्टरीज का सख्त होना
• धमनियों में वसा जमना
• भूख में कमी, पेट में जलन
• फ्लू (flu)
• ठंडा पसीना आना
• साइनोसाइटिस (sinusitis)
• शरीर में अधिक म्यूकस बनना
• जीभ पर सफेद परत जमना
• कमजोरी
• पाचन खराब होना
• बार बार पेशाब आना
• कान में अधिक मैल जमना
• स्किन का ऑयली होना
• शरीर में लेप लगा हुआ महसूस होना
• अंगों में ढीलापन
• डिप्रेशन

क्यों बढ़ता है कफ?
• कफ को बढ़ाने वाली चीजों को खाने से कफ बढ़ता है
• दूध से बने उत्पाद, वसायुक्त (fatly) और तैलीय/चिकनाई वाली (oily) चीज खाने से
• कोल्ड ड्रिंक, नमकीन और मीठी चीज खाने से
• फ्रीज का पानी पीने से
• दूध-दही, घी, तिल-उड़द की खिचड़ी, सिंघाड़ा, नारियल, कद्दू का सेवन करने से
• बहुत मीठे और खट्टे फल खाने से
• गरिष्ठ भोजन और ज्यादा खाने से
• ठंड और बारिश में ज्यादा समय बिताने से
• शारीरिक श्रम कम और दिन के वक्त सोने से
कफ को संतुलित रखने के उपाय
• सर्दियों के मौसम में गुनगुने पानी से नहाने से कफ को संतुलित रखने में मदद मिलती है।
• नहाने से पहले रोज आधा कप गर्म तिल के तेल से 10 से 20 मिनट शरीर की मालिश करें।
• सरसों के तेल से मालिश करना भी कफ को काबू में रखने में मददगार साबित होता है
• सुबह सुबह टहलने से कफ को संतुलित करने में मदद मिलती है।
• सर्दियों के मौसम में घर से बाहर निकलने पर शरीर को अच्छी तरह ढक कर रखें।
• नियमित व्या याम जरूर करें और इसमें जॉगिंग, हाइकिंग, बाइकिंग को भी शामिल करें।
• नियमित रूप से योगाभ्यास और प्राणायम करें।
• सूर्य नमस्काेर, अर्ध चंद्रासन, वीरभद्रासन, त्रिकोणासन, वृक्षासन, धनुरासन, शीरासन, पूर्वोत्तानासन और शवासन करें।
• तीखी, कड़वी या कसैले स्वा द की चीजें खाएं।
• अदरक, दालचीनी, लाल मिर्च, काली मिर्च और जीरे का सेवन करें।
• साबुत और ताजी पकी हुई सब्जियां खाएं।
• बासी खाना बिलकुल न खाएं। हल्कीी, सूखी और गर्म चीजें खाएं।
• शहद, मूंग दाल, गर्म सोया मिल्कं, हरी सब्जियों को खाने में शामिल करें।
कफ की अधिकता वाले दोष में क्या न खायें
• मैदा और उससे बनी चीज न खायें
• खीरा, टमाटर और शकरकंद न खायें
• केला, अंजीम और आम न खायें
• तरबूज के सेवन से भी परहेज करें
कफ दोष में क्या करें
• बाजरा, मक्का, राई जैसे अनाज का सेवन करें
• गेहूं, ब्राउन राइस (उसना चावल) का सेवन करें
• हर तरह की दालों का सेवन करें
• सब्जियों में पालक, पत्ता गोभी का सेवन करें
• ब्रोकली, हरी सेम, शिमला मिर्च, मटर का सेवन करें
• खाने में आलू, मूली, चुकंदर को शामिल करें
• जैतून या सरसों के तेल का उपयोग करें
• छाछ और पनीर का सेवन करें
• तीखे और गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करें
• शहद का सेवन करें और नमक कम खायें
कफ के असंतुलन से होने वाली बीमारियों का उपचार
• कसैले, मसालेदार और कड़वे स्वाद वाले खाद्य पदार्थ बढ़े कफ को संतुलित करने में मदद करते हैं।
• शरीर को सक्रिय रखना कफ की अधिकता के दोष से पीड़ित व्यक्ति के लिए जरूरी है।
• सुस्ती और आलस को दूर रखने की हर संभव कोशिश करें।
• नियमित रूप से योग करें। योग ऊर्जावान बनाए रखने में मदद करता है।
• दिन में आलस आने के बावजूद सोने की कोशिश न करें।
• कफ बहुत ज्यादा बढ़ जाने पर उलटी कराना फायदेमंद रहता है।
• तीखे और गर्म प्रभाव वाली औषधियों की मदद से विसेषज्ञों की देखरेख में उलटी करवाना चाहिए।
• उलटी कराने से आमाशय और छाती में जमा कफ बाहर निकल जाता है।
• कफ की कमी को दूर करने के लिए कफ बढ़ाने वाली चीजों का सेवन करें।
• दूध और चावल खाने से कफ बढ़ाने में मदद मिलती है।