सूकून भरी नींद और डेंगू-मलेरिया जैसी बीमारियों से बचाव के लिए मच्छरों से बचाव करना जरूरी है। लेकिन मच्छरों को दूर रखने के लिए अगर आप मच्छर मारने वाली कॉइल (मॉस्किटो कॉइल) (Mosquito Coil) का इस्तेमाल करते हैं तो अपनी जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसा कहने की वजह 2016 में हुई एक रिसर्च का नतीजा है।
असल में मच्छर मारने वाली कॉइल (मॉस्किटो कॉइल) (Mosquito Coil) जिन चीजों से बनती है और इससे जितना खतरनाक धुआं निकलता है, वह कई ऐसी बीमारियां देता है जो डेंगू और मलेरिया से भी ज्यादा खतरनाक है। लंबे समय तक इसके असर से जानलेवा बीमारियां होने तक का खतरा रहता है। साल 2016 में चीन और मलेशिया में कई कंपनियों की कॉइल पर रिसर्च करने के बाद चौंकाने वाला नतीजा सामने आया। बताया गया कि एक कॉइल से 75 से 100 सिगरेट जितनी धुआं निकलती है। जाहिर है, धुएं की इतनी मात्रा सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। ज्यादा खतरनाक बात यह है कि इससे करीब पीएम 2.5 धुआं निकलता है।
रिसर्च के नतीजे में बताया गया कि मॉस्किटो कॉइल और अगरबत्ती में पाइरेथ्रिन कीटनाशक, डाइक्लोरो-डिफेनिल-ट्राइक्लोरोइथेन (डीडीटी), कार्बन फॉस्फोरस जैसे हानिकारक तत्व (Does mosquito coil have side effects?) होते हैं। मच्छर मारने वाली कॉइल (मॉस्किटो कॉइल) (Mosquito Coil) में बेंजो पायरेंस, बेंजो फ्लूओरोथेन जैसे तत्व निकलते हैं।
कॉइल में कौन कौन-सा जहर है?
पाइरेथ्रिन कीटनाशक
डाइक्लोरो-डिफेनिल-ट्राइक्लोरोइथेन (DDT)
कार्बन फॉस्फोरस
बेंजो पायरेंस
बेंजो फ्लूओरोथेन
मॉस्किटो कॉइल के धुआं के इतना खतरनाक होने की वजह दिल्ली मेडिकल असोसिएशन (DMA) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल बंसल बताते हैं। डॉ. बंसल के मुताबिक मॉस्किटो रिपेलेंट्स के साथ-साथ ऐसे रसायन होते हैं जो कॉइल या अगरबत्ती को धीरे-धीरे जलाने में सक्षम बनाते हैं। यह दो तरह से काम करता है। इनमें मौजूद कीटनाशक मच्छरों को मार देते हैं और दूसरी तरफ अगरबत्ती में मौजूद सुगंधित पदार्थ मच्छरों को भगा देते हैं।
डॉ. बंसल तो मच्छर भगाने के नाम पर बाजार में मिल रहे लिक्विड को भी सुरक्षित नहीं मानते। डॉ. बंसल कहते हैं, “इसमें एलेथ्रिन और एरोसोल का मिश्रण होता है; जो कीटनाशी है। एक काले रंग की इलेक्ट्रोड रॉड बोतल के ऊपरी सिरे से जुड़ी होती है। रॉड के गर्म होने पर उसमें से धीरे-धीरे तरल धुआं निकलने लगता है, जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है।”
दिल्ली के तीरथराम अस्पताल (Tirath Ram Shah Hospital) में फीजिशियन डॉ. बिकास सिंह भी मॉस्किटो कॉइल के खतरे को लेकर खबरदार करते हैं।
मॉस्किटो कॉइल से कार्बन मोनोऑक्साइड समेत कई जहरीली गैस निकलती हैं। इन गैसों के संपर्क में आने से लोगों के दिल, दिमाग और फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचता है। वेंटिलेशन ठीक ना हो तो मॉस्किटो कॉइल से निकलने वाले जहरीले धुएं से कार्बन मोनोऑक्साइड पॉइजनिंग का खतरा बढ़ जाता है। ऐसा होने से लोग बेहोश हो सकते हैं और उन्हें उल्टी व सीने में दर्द भी हो सकता है।”
डॉ. बिकास सिंह, तीरथ राम अस्पताल, दिल्ली
डॉ. बिकास सिंह के मुताबिक चिंता वाली बात यह है कि कार्बन मोनोऑक्साइड में स्मेल नहीं होती और इस वजह से इसका पता लगाना मुश्किल होता है। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति को कॉइल लगाने के बाद सिरदर्द, चक्कर, मतली, उल्टी, सांस लेने में दिक्कत या घुटन महसूस हो, तो मॉस्किटो कॉइल बुझा देनी चाहिए। लंबे समय तक जहरीली गैसों के संपर्क में आने से लोगों की मौत भी हो सकती है।
मॉस्किटो कॉइल के साइड इफैक्ट्स (Side Effects Of Mosquito Coil)
कैंसर
आंखों में जलन
धुंधलापन और मोतियाबिंद
अस्थमा
स्किन एलर्जी
सांस लेने में दिक्कत
सीनियर फीजिशियन डॉ. अनिल बंसल कहते हैं कि कॉइल के धुएं के कारण मुंह, नाक और फेफड़ों के बीच वायुमार्ग यानी ब्रोन्कियल सूज जाते हैं। इसकी वजह से लगातार धुएं के संपर्क में रहने से क्रोनिक या एक्यूट ब्रोंकाइटिस होने का खतरा रहता है। इसके अलावा इससे निकलने वाला धुंआ फेफड़ों में जमा होकर वायुमार्ग को सिकोड़ सकता है जिसके कारण अस्थमा की समस्या हो सकती है। इसलिए 6 महीने से कम उम्र के बच्चे या नवजात शिशु को अगरबत्ती और कॉइल दोनों के संपर्क में नहीं लाना चाहिए। बच्चों को इससे थ्रोट इंफेक्शन और खांसी होने का भी खतरा रहता है।

कॉइल में मौजूद बेंजो पायरेन्स और बेंजो फ्लोरोइथेन नामक केमिकल सांस लेने में दिक्कत पैदा करते हैं। ज्यादा देर तक कॉइल, अगरबत्ती या कार्ड के आसपास रहने से यह धुआं शरीर के अंदर जा सकता है, जिससे सांस फूलने और दम घुटने की समस्या हो सकती है। इसके अलावा धुएं के कारण आंखों में जलन, धुंधलापन और मोतियाबिंद जैसी समस्याएं (Side effects of mosquito coil) भी हो सकती हैं। चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन की एक रिसर्च में कहा गया है कि मॉस्किटो कॉइल (Mosquito coil poisoning) और अगरबत्ती से निकलने वाले धुएं में कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ होते हैं। चीन और ताइवान में हुए पहले के अध्ययनों से भी यह बात साबित हो चुकी है कि इस धुएं का कनेक्शन फेफड़ों के कैंसर से है।
डिस्क्लेमर- ये सलाह सामान्य जानकारी है और ये किसी इलाज का विकल्प नहीं है।