H3N2 influenza : कोरोना के बाद आ गया अब नया खतरा, हजारों लोग रोज आ रहे इस वायरस की चपेट में!

Healthy Hindustan
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बीते दो साल से देश में जिस दौरान कोराना वायरस का प्रकोप बढ़ना शुरू होता था, इस साल उन्हीं दिनों में एक और वायरस ने देश को अपनी चपेट में ले लिया है। इस वक्त पूरे देश में एक खास वायरस की लहर है, जिसकी वजह से हर उम्र के लोग बीमार पड़ रहे हैं। इस वायरस का असर यह है कि देश के ज्यादातर हिस्सों के अस्पतालों में कुछ खास लक्षणों के मरीजों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। इस वायरस का नाम है H3N2, जो इन्फ्लूएंजा A का सब टाइप है।
इस साल इन्फ्लूएंजा A के सब टाइप H3N2 ने कोरोना की ही तरह डॉक्टरों से लेकर मरीजों को डराना शुरू कर दिया है। हालत यह है कि इस वायरस की वजह से उभरने वाले लक्षणों के हजारों मरीज रोज सामने आ रहे हैं। इसमें मरीजों को 3 से 5 दिनों तक बुखार रहता है और लगातार खांसी रहती है। कई मरीजों में खांसी के लक्षण तीन सप्ताह तक रह सकते हैं। अगर आपको या आपके किसी रिश्तेदार को बुखार के साथ लगातार खांसी परेशान कर रही है तो फौरन डॉक्टर से इलाज कराने की सलाह दी जाती है।

 इस बीमारी (फ्लू) को सरकार और स्वास्थ्य से जुड़ी संस्थाएं कितनी गंभीरता से ले रही हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research) (ICMR) और इंडियन मेडिकल असोसिएशन ((Indian Medical Association)) (आईएमए) (IMA) लगातार इस संबंध में दिशानिर्देश जारी कर रहे हैं। स्थिति को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक ने केंद्रीय अस्पतालों के वरिष्ठ अधिकारियों और मेडिसिन के एक्सपर्ट के साथ मीटिंग भी की है। 

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) (ICMR) ने पाया है कि इन्फ्लूएंजा A के सबटाइप H3N2 में किसी भी अन्य फ्लू के सबटाइप की तुलना में ज्यादा मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आ रही है। ICMR के मुताबिक H3N2 की वजह से जिन मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आई उनमें 92 प्रतिशत मरीजों को बुखार था, 86 प्रतिशत को कफ की शिकायत थी जबकि 27 प्रतिशत को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। इसी तरह 16 प्रतिशत मरीज को सीने में घरघराहट की परेशानी मिली। ICMR ने यह भी पाया कि ऐसे मरीजों में 16 प्रतिशत निमोनिया की चपेट में आ गए। इस खास फ्लू की चपेट में आने वालों का आलम यह है कि इनमें 10 प्रतिशत मरीजों को सांस संबंधी गंभीर संक्रमण अस्थमा से इस कदर जूझना पड़ रहा है कि उन्हें ऑक्सीजन देने की नौबत आ गई। यही नहीं इन मरीजों में सात प्रतिशत को तो आईसीयू (ICU) में भर्ती कराना पड़ा।

जाहिर है, इस फ्लू को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। दिल्ली के मशहूर Pulmonologist डॉ. संदीप दत्ता कहते हैं,

“यह सच है कि H3N2 कोरोना वायरस नहीं है, लेकिन जिन्हें कोरोना वायरस अपनी चपेट में ले चुका है उन्हें खास तौर पर ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। इसकी वजह H3N2 की हवा में मौजूदगी है। कोरोना की तरह इस वायरस का असर भी फेफड़ों पर ज्यादा दिख रहा है और कोरोना की ही तरह इस वायरस का खतरा 50 साल से ज्यादा और 15 साल से कम उम्र के लोगों में ज्यादा है।”

H3N2 वायरस के संक्रमण के लक्षण
• तेज बुखार
• शरीर में दर्द
• सिर दर्द
• गले में खराश
• गले में जलन
• दो सप्ताह तक लगातार खांसी
• ठंड लगना
• उलटी
• डायरिया
• जुकाम (बहती नाक)
• छींक

कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के लिए ये संक्रमण गंभीर हो सकता है। अगर लोग मास्क का प्रयोग जारी रखेंगे तो इससे काफी मदद मिलेगी।”

डॉ. संदीप दत्ता, सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट

डॉ. संदीप दत्ता के मुताबिक, “कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के लिए ये संक्रमण गंभीर हो सकता है। उन्होंने कहा कि अगर लोग मास्क का प्रयोग जारी रखेंगे तो इससे काफी मदद मिलेगी।” डॉ. संदीप दत्ता इस फ्लू की चपेट में आने पर या इस बीमारी से मिलते-जुलते लक्षण दिखने पर अपने मन से दवाई खाने वालों को चेतावनी देते हैं। उनके मुताबिक ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। खासकर उनको जो अपने आप या केमिस्ट की सलाह से एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं।

लक्षण दिखने पर क्या करें
• साबुन से हाथ लगातार धोते रहें
• मास्क पहनें और भीड़ वाली जगहों से बचें
• बार बार मुंह और चेहरा छूने से बचें
• खांसते या छींकते वक्त चेहरा ढकें
• लगातार पानी पीते रहें
• डॉक्टर की सलाह से ही दवा लें

डॉ. दत्ता आईएमए (IMA) की उस सलाह की तरफ बाकी डॉक्टरों का भी ध्यान खींचते हैं। वह कहते हैं कि H3N2 की चपेट में आने वाले मरीजों की स्थिति को देखते हुए उनका इलाज तो हो, लेकिन जो मरीज एजिथ्रोमाइसिन और एमोक्सिक्लेव जैसे एंटीबायोटिक्स लेकर स्वस्थ महसूस करते ही दवा का कोर्स बीच में छोड़ देते हैं, वह अपनी सेहत के साथ बड़ा खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसा करने वालों के ऊपर बाद में एंटीबायोटिक्स काम करना बंद कर देते हैं और इसके बेअसर साबित होने का मतलब है जिंदगी से समझौता। ऐसे मरीजों को जब भी एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत होगी, वो रेजिस्टेंस के कारण काम नहीं करेंगी। और जब तक इस बात का अहसास होगा मरीज की हालत बद से बदतर हो चुकी होगी।

लक्षण दिखने पर क्या ना करें

  • लोगों से हाथ ना मिलायें
  • खाना बांटकर या एक ही थाली में ना खाएं
  • सार्वजनिक जगहों पर ना थूकें
  • अपने मन या केमिस्ट की सलाह से दवा न लें

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